आज के इस व्यस्त जीवन में हम सब एक कटपुतली की तरह हो गए है, जैसे की हमारा कोई अस्तित्व ही न हो कभी हम अपने अधिकारियो के हाथो की कटपुतली है तो कभी अपने मालिक की क्या हमें स्वतः जीने का अधिकार नहीं ? क्यों आज़ादी के इतने वर्षो बाद भी हम गुलामो की तरह ही जिंदगी बिता रहे है ? यह प्रशन मेरे मन में बार-बार उठता है,की आज भी एक व्यक्ति दुसरे अपने अधीनस्थ व्यक्ति के अधिकारों का हनन करता है, क्यों हमारे जीवनों से आपसी भाईचारा और सद्भाव समाप्त हो गया है? इन समस्त बातो का मेरे नज़रिए से एक उत्तर प्रगट होता है वो है लालच (लोभ )
यह कहना कुछ गलत न होगा की लालच ही भ्रस्टाचार की जननी है
जिसमे लिप्त होने के बाद इन्सान सारी इंसानियत भूल जाता है
१. उपरोक्त तस्वीरे कुछ ऐसा ही बोध कराती है
२.इन्सान लालच में ऐसा लिप्त है की खुलेआम रिश्वत लेने से भी नहीं डरता ।
३. गरीब लोगो जीवन जीने के लिए मजबूर कर अनैतिक कार्य कराया जाता है ।
४.नेता जनहित छोड़ कर फायदे के मंत्रालय देखते है ।
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